बाप की टोपी / शांति यादव
बाप की टोपी
कपड़े की नहीं होती है
बेटी के जिस्म की
बनी होती है,
जहाँ-जहाँ बेटी जाती है
बाप की टोपी
साथ जाती है।
टोपी का संबंध
मात्र बेटी से है
बेटे को उससे
कोई सहानुभूति नहीं।
अंदर से
बाहर से
पुत्र चाहे कितना ही
काला होकर आता है,
टोपी की सफ़ेदी
पर कोई
अंतर नहीं आता है।
वह तो बेटी है,
कि तिनका हिला नहीं
टोपी पहले
मैली, हो जाती है,
तभी हर बाप
अपनी बेटी से
कहता है
बेटी-टोपी की
लाज रखना
भाई की होड़
मत करना।
वह तो वंश बेल है
अमर बेल की तरह
इसी में इसकी शोभा है।
बेटियाँ बेज़ुबान रहें
इसी में वे चरित्रवान हैं।
टोपी कभी नहीं फटती है
बेटियाँ मिटती हैं
क्योंकि टोपी की सुरक्षा को
हज़ारों बेटियाँ
कम पड़ती हैं
और यह सिलसिला
अंतहीन होता है।
वंश सुख की
नींद सोता है।
प्रहरियाँ टोपी की
लाज रखती हैं
फिर भी वे
पराई कही
जाती हैं।
रखती हैं बेटियाँ
टोपी की लाज
पहनते है बेटे
टोपी का ताज।