हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें / शैलेन्द्र
कश लगा, कश लगा, कश लगा, कश लगा.... कश लगा, कश लगा, कश लगा - 2
ज़िन्दगी ऐ कश लगा - 2 हसरतों की राख़ उड़ा
ये जहान फ़ानी है, बुलबुला है, पानी है बुलबुलों पे रुकना क्या, पानियों पे बहता जा बहता जा कश लगा, कश लगा, कश लगा....
जलती है तनहाईयाँ तापी हैं रात रात जाग जाग के उड़ती हैं चिंगारियाँ, गुच्छे हैं लाल लाल गीली आग के खिलती है जैसे जलते जुगनू हों बेरियों में आँखें लगी हो जैसे उपलों की ढेरियों में दो दिन का आग है ये, सारे जहाँ का धुंआँ दो दिन की ज़िन्दगी में, दोनो जहाँ का धुआँ
ये जहान फ़ानी है, बुलबुला है, पानी है बुलबुलों पे रुकना क्या, पानियों पे बहता जा, बहता जा कश लगा, कश लगा, कश लगा....
छोड़ी हुई बस्तियाँ, जाता हूँ बार बार घूम घूमके मिलते नहीं वो निशान, छोड़े थे दहलीज़ चूम चूमके जो पायें चढ़ जायेंगे, जंगल की क्यारियाँ हैं पगडंडियों पे मिलना, दो दिन की यारियाँ हैं क्या जाने कौन जाये, आरी से बारी आये हम भी कतार में हैं, जब भी सवारी आये
ये जहान फ़ानी है, बुलबुला है, पानी है बुलबुलों पे रुकना क्या, पानियों पे बहता जा बहता जा कश लगा, कश लगा, कश लगा.... ज़िन्दगी ऐ कश लगा हसरतों की राख उड़ा ये जहान फ़ानी है, बुलबुला है, पानी है बुलबुलों पे रुकना क्या पानियों पे बहता जा, बहता जा कश लगा, कश लगा, कश लगा....
गीतकार- गुलज़ार