भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चुप रहना / ज्योति रीता

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:55, 16 दिसम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्योति रीता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आसान नहीं होता
बच्चियों के मामलात में
चुप्पी साधे रहना
खींचती है नसें
आत्मा पर हथौड़े का प्रहार है
ह्रदय छलनी
चुप्पी साधे रहने की तिलमिलाहट है
पीटते अपनी-अपनी पार्टी के ढोल
चचा के राज में हो रहा है क्या?
अपना तो राज भूले हैं जैसे
कैसे-कैसे और होंगे आसीन
अब तो
हर राज नोंची-खसोंटी जातीं हैं बेटियाँ
बहुत मुश्किल है
ऐसे आबोहवा में ज़िंदा रहना
सांस ले पाना
राजधानी है भूखी
राज्य है बलात्कारी
हमें दो देश निकाला
कि अब पूरब से उगना
मुनासिब नहीं!