भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अथक बटोही / आरती 'लोकेश'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:07, 18 दिसम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आरती 'लोकेश' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उषाकाल में अथक बटोही,
कहाँ आज है दाना चुगना,
उत्तिष्ठ पसारे पंख गगन में,
किस पड़ाव है तुमको मुड़ना।

एक डाल विश्राम करें तो,
जैसे मुक्ता जड़े हार में,
एक धरा पर चुगते चलते,
जैसे कड़ी जुड़े तार में ।

सूझ-बूझ से मार्ग सुझाते,
कभी दूजे की राह न आते,
निरंतर अंतर पर अंबर में,
स्व परिधि सब उड़ते जाते।

गलबैंया डाल, मिलें, उड़ें जब,
प्रस्फुट नेतृत्व आदर्श वहीं,
सात समुंदर पार चले तो,
लक्षित अनुशासन न और कहीं।