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झाँसी की रानी / नवीन कुमार सिंह

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बाँध पीठ पर बालक अपना
हाथों में तलवार लिये
निकली थी झाँसी की रानी
रणचंडी अवतार लिये

एक तरफ वो शक्ति रूपिणी
जन गण मन की आशा थी
एक तरफ माता का आँचल
ममता की परिभाषा थी
साँस आखिरी तक लड़ने की जिसने मन मे ठानी थी
आज खड्ग से अपने उसको लिखनी अमर कहानी थी

था स्वराज का स्वप्न नेत्र में, होठों पे ललकार लिए
निकली थी झाँसी की रानी
रणचंडी अवतार लिये

चपल बाजुओं से करती वो दुश्मन पर यूँ वार चली
हो जैसे चामुण्डा माता रक्तबीज संहार चली
लड़ते सेनानी भी जैसे सूर्य तेज अंधियारों में
मातृभूमि की जय गूंजी थी झाँसी के गलियारों में

अंग्रेजी दल डर के मारे कांप रहे हथियार लिये
निकली थी झाँसी की रानी रणचंडी अवतार लिए

जिनको अबला माने दुनिया, उनमें बल संचार किया
दुश्मन से लड़ने को जिसने दुर्गा दल तैयार किया
रानी की ही झलक थी जिसमें वो झलकारी बाई थी
किले की रक्षा करते उसके पति ने जान गवाई थी

फिर भी बढ़ते चली वो आगे, आँखों मे अंगार लिए
निकली थी झाँसी की रानी रणचंडी अवतार लिए

भारत का दुर्भाग्य रहा है छला गया है अपनों से
गद्दारों ने अक्सर खेला भारत माँ के सपनों से
दूल्हेराव ने दुश्मन के आगे दरवाजा खोल दिया
इस चलते रानी के अपनों ने जीवन का मोल दिया

फिर भी बचकर निकल गई वह जख्म कई उपहार लिये
निकली थी झाँसी की रानी रणचंडी अवतार लिये

तन घायल था, सूजी आँखें पर भीषण संग्राम हुआ
नाले से आगे बढ़ना था पर घोड़ा नाकाम हुआ
हारी नहीं किंतु दुश्मन से, हाथ न उनके आई थी
मरकर भी जो अमर रह गई, रानी लक्ष्मीबाई थी

उनके आगे शीश झुकाए अन्तस् में आभार लिये
निकली थी झाँसी की रानी रणचण्डी अवतार लिये