भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज फिर एक गीत गाओ / नवीन कुमार सिंह

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:39, 18 दिसम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन कुमार सिंह |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज फिर आया रवि है रोशनी तेरे द्वार लेकर
फिर खिली सूरजमुखी है ढेर सारा प्यार लेकर
ये हवाएं बह रही है ठीक ही पश्चिम दिशा में
गुम हुआ देखो अंधेरा आज फिर कल की निशा में
यह नए दिन का नया सन्देश है, तुम मुस्कुराओ
शब्द पुलकित हो गए हैं, आज फिर इक गीत गाओ

झूमती है झील भी अब, मौन की अंगड़ाईयो में
पंछियों का काफिला फिर उड़ चला उचाईयों में
आज भी भँवरों की गुंजन देखकर हँसती कली है
गुफ्तगू करके पहाड़ों से नदी वापस चली है
झरनों की आवाज में संगीत है, तुम लय मिलाओ
शब्द पुलकित हो गए हैं, आज फिर इक गीत गाओ

आँख खोलो यह सुबह तुमको मिली उपहार समझो
और किरणों की छुअन को प्रकृति का प्यार समझो
ढूंढ लो कि सीप कोई फिर समंदर में छुपा हो
या तुम्हारे भाग्य में आज एक मोती लिखा हो
स्वप्न जो सब खो गए हैं, फिर से पलकों पे सजाओ
शब्द पुलकित हो गए हैं, आज फिर इक गीत गाओ