भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर में डाली गई है फूट बहुत / राज़िक़ अंसारी

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:49, 18 दिसम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राज़िक़ अंसारी }} {{KKCatGhazal}} <poem> घर में ड...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर में डाली गई है फूट बहुत
अपना रिश्ता है पर अटूट बहुत

आना जाना लगा है यादों का
आज मसरूफ़ है ये रूट बहुत

कौन कहता है काम काज नहीं
आज कल बिक रहा है झूट बहुत

दिल नहीं अब हमारे क़ाबू में
हमने दे दी थी इस को छूट बहुत

ग़म नहीं कोई, दुख नहीं कोई
बोलता हूँ मैं ख़ुद से झूट बहुत