भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नया किरदार ढलना चाहिए अब / राज़िक़ अंसारी

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:28, 18 दिसम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राज़िक़ अंसारी }} {{KKCatGhazal}} <poem> नया किर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


नया किरदार ढलना चाहिए अब
कहानी कुछ बदलना चाहिए अब

चलेगी नफ़रतों की फिल्म कब तक
तुम्हें टापिक बदलना चाहिए अब

बहुत कर ली अंधेरों ने हुकूमत
नया सूरज निकलना चाहिए अब

नहीं अच्छी नहीं नीयत हवा की
चराग़ों को संभलना चाहिए अब

ग़लत फ़हमी में कितना जी लिए हम
सराबों से निकलना चाहिए अब