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कवि कोलम्बस होता है / अनामिका अनु

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कवि कोलम्बस होता है
और अपनी कविता का द्वीप स्वंय तलाशता है ।

फिर एक दिन उस द्वीप का स्वामी हो जाता है
अपने हर हरे, काले भाव, छन्द, शिल्प, कविता
और कहन का एकाधिपति
उस द्वीप के कण-कण में उसके भाव होते हैं
और चप्पे-चप्पे में उसकी कविता ।

कविता कभी पात, कभी रात, कभी गन्ध, कभी पक्षी
कभी शेर बनकर घूमती रहती है
कभी सागवान के पेड़ बनकर खड़ी
कभी बाँस बनकर झूमती
कभी कचनार बनकर बिखरती
कभी झुरमुट बन झाँकती
कभी सफ़ेद हिरण बन भागती-भगाती ।

कवि उत्तम पुरूष होता है
उससे बेहतर उसकी कविताओं को न कोई समझ सकता है
न ही संशोधित या विस्तृत कर सकता है ।