भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हत्या की संस्कृति / रघुवीर सहाय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:56, 7 जनवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रघुवीर सहाय |अनुवादक= |संग्रह=कुछ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अँग्रेज़ी पढ़ा-लिखा हत्यारा कहता है
“मुझे कहीं छिपना है, पुलिस पीछे पड़ी है”
आधुनिक प्रेमिका कहती है “ख़ून, अरे लाओ, पट्टी कर दूँ”
औरत से कहता है अभिजात अपराधी “धन्यवाद I”
(यह एक शब्द में संस्कृति है)
पट्टी करती है जब सर झुका कामिनी
मानो संवाद में बड़ा अभिप्राय भर कहता है
“तुमने पूछा नहीं ख़ून कैसे लगा I”
“यह मैं पूछना नहीं चाहती
इस समय मेरे लिए इतना ही काफ़ी है कि तुम मुश्किल में हो I”
हत्या की संस्कृति में प्रेम नहीं होता है
नैतिक आग्रह नहीं
प्रश्न नहीं पूछती रखैल
सब कुछ दे देती है बिना कुछ लिए हुए पतिव्रता की तरह I