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मैंने पहना तुम्हें / लेबोगैंग मशीले / श्रीविलास सिंह
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मैंने पहना तुम्हें आज
एक फटे-पुराने कोट की तरह
इस अनुभूति की ख़ातिर कि यह हुआ करता था कितना गर्म
मैंने पहना तुम्हें
रात्रि के चिथड़े हो चुके परदे के नीचे
सितारों अथवा आँखों की चकाचौंध से दूर
मैंने पहना तुम्हें
जब तक हुई नहीं स्निग्ध
स्पर्श से
मुड़े तुड़े नोट्स के
जो छूट गए थे मेरे नन्हें हाथ में
मैं धारण करती हूँ तुम्हारी गन्ध दिन में
किन्तु नहीं चखा हैं मैंने कभी
स्वाद तुम्हारे चुम्बन का ।