तुम और मैं / लेबोगैंग मशीले / श्रीविलास सिंह
तुम और मैं
हम हैं स्वप्नों के रखवाले
हम उन्हें ढालते हैं रश्मि-पुञ्जों में
और बुनते हैं उन्हें जीवन की सीवन में ।
तुम और मैं
जानते हैं कि जीवन वह नहीं है जो यह लगता है
हम उतार लेते हैं चर्बी दुबलों से
और पाते हैं तथ्य कहीं इसके बीच
दृष्टि जिसे हमने फिर से पाया
और चयन की यंत्रणा
तुम्हारा है, बस, मस्तिष्क
और मेरी है, बस, आवाज़
पर जब हम करते हैं प्यार
हम करते हैं उस ऊष्मा से जो उठेगी किसी गीत की उड़ान की भाँति
अपने पार्श्व की मांस-मज्जा में
यदि यह प्यार ही है जिसकी है कमी हम में
तब हम चलते हैं उस पीड़ा के साथ जो हम देखते हैं
प्रेम का विनिमय जिससे हमें है डाह
चलते हुए अनिर्णय से, तिरोहित होते भय में
हम चढ़ते हैं अन्तःस्फुरण के शिखर पर इस जीवन की यात्रा में ।
और अनन्त के हाथों हम सुनते हैं शेष लोगों का विलाप
परीक्षण को प्रस्तुत अपनी बुद्धि द्वारा कर दिए गए महत्वहीन
किन्तु तुम और मैं
तर्क की सीमाओं का करते हैं विस्तार
तुम और मैं
रेखांकित करते हैं मौसमों का रहस्य
तुम और मैं
चित्रित करते हैं यह इतिहास स्वतन्त्र मनुष्यों के लिए
ऐसा कुछ रोका नहीं जा सकता जो हो तुम और मुझ जैसा ।
तुम और मैं
हम हैं स्वप्नों के रखवाले
हम उन्हें ढालते हैं रश्मि-पुञ्जों में
और बुनते हैं उन्हें जीवन की सीवन में ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीविलास सिंह