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एक नई सी गुमटी है / रमेश पाण्डेय
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एक नई सी गुमती है
मर्तबान में टाफ़ी, साबुन, बिस्क्य्ट बन्द हैं
धागे में लटके हैं गुटखे
एक ज़र्दे का पान लगवाता हूँ
दो रुपए के सिक्के में से काट कर
दुकानदार मुझे लौटाता है
एक का नोट
एक रूपए का नीला कड़क नोट
मुद्रण वर्ष 1969
छत्तीस वर्ष से बचा कर रखी गई
आस का भग्नावशेष