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माँ को जाना है / रमेश पाण्डेय
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माँ को जाना है बेटे के पास
माँ ख़ुश है
ताने-बाने पर चढ़ी हैं नीली सफ़ेद यादें
बुने जा रहे हैं आसमानी सपनों के थान
दिख रहे हैं
उजले-उजले दिन
नरम-नरम रातें
सुनाई दे रही है विस्मित हँसी
अभी मकई के दाने निकालने हैं
अचार को धूप दिखानी है
कपड़े तह करने हैं
तलनी है मीठी पूरी
खदेरन को खेत सहेजना है
बड़कू को घर-दुआर
काम ही काम फैल गया है आज