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इंटरनेट में मेरा गांव / सत्यनारायण स्नेही

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पहली बार मेरे गाँव में
जब आया टेलीविज़न
पूरा गाँव एक साथ
देखता था
रामानंद सागर की रामायण
पहली बार लगा टेलीफ़ोन
चहक जाते थे घंटी सुनकर
सबसे खुशनुमा पल था
उसमें अपनों से बतियाना।
पहली बार जब आया
मोबाईल फ़ोन
हैरान थे सभी
इस तकनीक पर।
मेरे गाँव में आज
हर हाथ में है इंटरनेट
हर वक़्त मालूम है
देश-दुनिया का हाल
जहाँ सजती थी चौपाल
नदारद है ठहाके
चार लोग बैठे हैं बेसुध
यांत्रिक-संसार में।
नहीं बची
चूल्हे में आग
जहाँ रोटी पकने के साथ
हल होता था
परिवार का गणित
तलाश रहे हैं सभी
गूगल पर
जीवन का सार।
आंगन, चौराहे पर
खेलते थे बच्चे
सुख-दुख की
लगती थी आवाज़ें
दाल-सब्जी का उधार
शक्कर-घी का उपहार
आत्मीय अहसास और प्यार।
दरअसल-
मेरा गाँव था
एक बड़ा परिवार
यहाँ पनपते थे रिश्तें
हर व्यक्ति के
निभाई जाती थी रस्में
हर्षोल्लास से तीज-त्यौहार।
अब कमरों की दीवारों पर
टेलीविज़न की तरह
लटक गई है
रिश्तों की पोटली
पारिवारिक सरोकार
पति-पत्नी में भी है
वट्सएप पर वार्तालाप
पांच इंच की स्क्रीन पर
सिमट गया है आदमी
इंटरनेट में समाया है
मेरा गांव