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एक पथिक आनंद की ओर / शीतल साहू

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मैं हुं एक मुक्ति कामी,
हुं मैं, एक आनंद प्रेमी,
मैं हुं एक स्वच्छंद विचरता पक्षी,
हुं मैं, एक चिरंतन आत्मा,
चाहता हुं तेरे पास आना।

मैं चाहता हुं बंधनो से मुक्ति,
चाहता हूँ मैं, एकांत अनुभूति,
मुझे प्रिय है वे प्रकृति के नदी नाले,
मुझे नहीं भाते वह सांसारिक जाले।

हे मेरे मालिक, मैं खोजता हुं तुझे,
मैं चाहता हुं पार उत्तर जाना इस भवसागर से,
मैं चाहता हुं जीवन, उस नाव की तरह,
जो चलता तो है जल पर,
पर नहीं आता जल उसके अंदर।

नही चाहिए मुझे, वह शक्ति
वह भक्ति
मुझे तो बस आप चाहिए,
वो चिदानंद अनुभूति।
जिन्हें दे दिया है नाम, इन सबका
जिसे चाहते है लोग, पाना इन रूपो में
हे, मेरे प्रियतम मैं तो बस आपका प्रेमी हुं,
तुझ आनंद का, तुझ परमानंद का।

मैं आ रहा हुँ प्रभु, तेरी ओर
छोटे छोटे कदमो से बढ़ रहा हुं, तेरी ओर
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के राहों पर चलते हुए,
ऋषियो के बताए, जीवन के उस राजपथ पर बढ़ते हुए।

मैं आ रहा हूँ तेरी ओर,
शून्य से अनंत की ओर,
बूंद से सागर की ओर,
एक मुक्तिकामी की कामना की ओर,
तुझ परमानंद को पाने की ओर,
एक पथिक, आनंद की ओर।