भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माँ बस एक तुम ही सहारा / शीतल साहू
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:32, 10 जनवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शीतल साहू |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
चंहु ओर है घनेरा
घुप्प है अंधेरा
मां, कर दो उजास
भर दो जीवन में प्रकाश।
हे माँ, बस एक तुम ही हो सहारा।
दुख की बादलों को हटाकर
निराशा के धुँए को छटाकर
उमंग की शक्ति तु दिला
भक्ति की ज्योति तु जला
हे माँ, बस एक तुम ही हो सहारा।
मन से तमस को हटाकर
हृदय से संकीर्णता को मिटाकर
आत्मा को मुक्ति तु दिला
बूँद को उस सागर से मिला
हे माँ, बस एक तुम ही हो सहारा।
दे शक्ति और ज्ञान
दे भक्ति और शरण
पहुँचा दे उस किनारा
पार लगा दे जीवन नैय्या हमारा
हे माँ, बस एक तुम ही हो सहारा।