भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम / नाज़िम हिक़मत / कविता कृष्णापल्लवी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:50, 15 जनवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नाज़िम हिक़मत |अनुवादक=कविता कृष...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
[
तुम मेरी ग़ुलामी हो
और मेरी आज़ादी
तुम हो
गर्मियों की एक आदिम रात की तरह
जलती हुई मेरी देह
तुम मेरा देश हो !
तुम हो
हल्की भूरी आँखों में हरा रेशम
तुम हो विशाल, सुन्दर और विजेता
और तुम मेरी वेदना हो
जो महसूस नहीं होती
जितना अधिक मैं इसे महसूस करता हूँ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : कविता कृष्णापल्लवी