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बरखा की भोर / नरेन्द्र दीपक

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मेघों की रिमझिम का मीठा संगीत
झरनों की कल कल का मादक संगीत,
अम्बुआ की डाली पर कोयल का शोर
बरखा की भोर।

अम्बर से धरती तक पानी का जाल
बाग़ों में झुकी झुकी जामुन की डाल,
लछुआ की देहरी में सटे खड़े ढोर
बरखा की भोर।

बादल के घूँघट से सूरज की किरण,
झाँक रही जैसे हों, हिरणी के नयन,
बाँसों के जंगल में, नाच रहे मोर
बरखा की भोर।