भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
काला राक्षस-8 / तुषार धवल
Kavita Kosh से
Lina jain (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 19:18, 8 अक्टूबर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुषार धवल }} इस धमन-भट्ठी में एक सन्नाटे से दूसर...)
इस धमन-भट्ठी में
एक सन्नाटे से दूसरे में दाखिल होता हुआ
बुझाता हूँ
देह
अजनबी रातों में परदे का चलन
नोंचता हूँ
गंध के बदन को
यातना की आदमख़ोर रातों में
लिपटता हूँ तुम्हारी देह से
नाख़ून गड़ा कर तुम्हारे
माँस पर
लिखता हूँ
प्यास
और प्यास...
एड़ियों के बोझ सर पर
और मन दस-फाड़
ख़ून-पसीना मॉल वीर्य सन रहे हैं
मिट्टी से उग रहे ताबूत
ठौर नहीं छाँह नहीं
बस मांगता हूँ
प्यास
और प्यास...