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शरद के पानी चढ़लोॅ छै / अनिल कुमार झा
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शरद के पानी चढ़लोॅ छै
गुमसुम चुप चुप शांत शिथिल,
छनै छनै ई बढ़लोॅ छै
शरद के पानी चढ़लोॅ छै।
बात की होलै बोलै नै
मनोॅ में राखी घुटलोॅ जाय,
बिन कहने जे रूसलोॅ छै
शरद के पानी चढ़लोॅ छै।
मैना फुदकी ऐलोॅ ऐंगना
मनझमान छै बहुतेॅ व्यथित,
चुप चुप कैन्हेॅ चिढ़लोॅ छै
शरद के पानी चढ़लोॅ छै।
कास छै फुललोॅ दपदप रूइया
धानी चुनरी लगै झकास,
चान्दनीयो ओझरैलोॅ छै
शरद के पानी चढ़लॉे छै।