भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हे जी शरद ऐलै / अनिल कुमार झा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:21, 22 जनवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल कुमार झा |अनुवादक= |संग्रह=ऋत...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मोॅन हमरो झकास कास रंग जे खिलै
आबेॅ कहियों केना हे जी शरद ऐलै।

खेत खेत रो पानी ते बहलै सभे
आबे धरती नरम रं रहलै सभे,
बात बहलोॅ चलै छे जे डगरे-डगर
चाहै सूरूज बनी के की चमकौ मड़र,
बिन बातोॅ के बुझने जे दरद होलै
आबेॅ कहियों केना हे जी शरद ऐलै।
बात हमरोॅ तेॅ सबटा अधूरे यहाँ
ओकरा बोलै ले आबी, जी जाओं कहाँ,
साँझ होलै पखेरू भी उड़लै गेलै
रात भिजलोॅ छै चुपके से चुप्पेे रहलै,
कामना के अधूरा दरद होलै
आबेॅ कहियों केना हे जी शरद ऐलै।
शांत जीवन के संदेश बोलै छै बोल
आपनोॅ चुपकी के अनजानें देनै छै खोल,
कखनू पुरबा वहै जें दै देहोॅ दुखाय
आरू हरसिंगार झरने बिन देलकै बताय।
गुप्त रहलै न प्रीत बेपरद भेलै
आबेॅ कहियों केना हे जी शरद ऐलै।