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काला राक्षस-16 / तुषार धवल
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मैं स्तंभ स्तंभ गिरता हूँ
मैं खंड खंड उठता हूँ
ये दीवारें अदृश्य कारावासों की
आज़ादी ! आज़ादी !! आज़ादी !!!
बम विस्फोट !!!
कहाँ है आदमी ?
प्रति मानव सब चले जा रहे किसी इशारे पर
सम्मोहित मूर्छा में
मैं पहचानता हूँ इन चेहरों को
मुझे याद है इनकी भाषा
मुझे याद है इनकी हँसी इनके माटी सने सपने
कहाँ है आदमी ?
सुनहरे बाइस्कोप में
सेंसेक्स की आत्मरति
सम्भोग के आंकड़े
आंकड़ों का सम्भोग
आंकडों की पीढ़ियों में
कहाँ है आदमी ?
सन्नाटे ध्वनियों के
ध्वनियाँ सन्नाटों की
गूंजती है खुले जबड़ों में
यह सन्नाटा हमारी अपनी ध्वनियों के नहीं होने का
बहरे इस समय में
बहरे इस समय में
मैं ध्वनियों के बीज रोप आया हूँ।