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काला राक्षस-18 / तुषार धवल
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काले राक्षस
देखो, तुम्हारे मुँह पर जो मक्खियों-से भिनभिनाते हैं
हमारे सपने हैं
वो जो पिटा हुआ आदमी अभी गिरा पड़ा है
वही खडा होकर पुकारेगा बिखरी हुई भीड़ को
आस्था के जंगल उजड़ते नहीं हैं
काले राक्षस
देखो, तुमने बम फोड़ा और
लाश तौलने बैठ गए तुम
कबाड़ी !
जहाँ-जहाँ तुम मारते हो हमें
हम वहीं-वहीं फिर उग आते हैं
देखो
मौत का तांडव कैसे थम जाता है
जब छटपटाए हाथों को
हाथ पुकार लेते हैं
तुम्हारे बावजूद
कहीं न कहीं है एक आदमी
जो ढूंढ ही लेता है आदमी !
काले राक्षस !
घर्र-घर्र घूमता है पहिया