धूल और अस्थियाँ / महातिम शिफ़ेरॉ / श्रीविलास सिंह
समुद्र में फँसे, बुलबुले
मिट्टी, धूल और अस्थियों के
फिसलते हैं मेरे चेहरे पर ।
यह नहीं है मेरी कहानी;
किन्तु इसमें मैं खड़ी हूँ
पुकारी जाती हुई दूसरे नामों से;
मेरे अतीत के अस्तित्वों के प्रेत
सभी पहुँचते हुए एक ही समय
और सभी इसे अस्वीकार करते हुए —
यह विदेशीपन उन्हें लगता है
किसी जली और फेंक दी गई चीज़ की गन्ध सा ।
मैं स्वप्न देखती हूँ अपनी देह को ढक लेने का
अस्साब के ढूहों के सफ़ेद नमक से —
लाट की पत्नी ने भी
फुसफुसा कर बताया अपने शहर का नाम
अपनी आख़िरी साँस के साथ ।
इसकी बजाय, यह देह है अस्थि,
बनी हुई अनेक टुकड़ों में टूटने हेतु,
काली कीचड़ या धूल
किरचों सी चुभती हुई मेरे पार्श्व में
यहाँ, वहाँ, यहाँ,
यह, एक नया आरम्भ,
एक नई मृत्यु ।
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीविलास सिंह
लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
Mahtem Shiferraw
Dust and Bones
Stranded at sea, bubble from
the earth, dust and bones
slide on my face.
This is not my story;
but in it I stand
called by other names;
the ghosts of my past selves
all reaching at the same time
and all refusing this –
this foreignness they smell
like something burned and tossed.
I dream of covering my body
with the white salt of Assab’s dunes –
even Lot’s wife
whispered the name of her city
with her last breath.
Instead, this body is bone,
constructed to fracture into multitudes,
black mud or dust
splintering my sides
here, there, here,
this, a new beginning,
a new death.