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नामावली-२ / महातिम शिफ़ेरॉ / श्रीविलास सिंह

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वे जो दिए गए हैं हमें
कगार पर शोक के,
अथवा आनन्द के – अथवा दोनों के;

वे जो चिन्हित हैं हमारे माथों पर
एक समूची पीढ़ी का शाप,
अथवा कुछ अधिक,

चिन्हित हमारे उदर पर
जन्मजात चिह्न, अंकों की भांँति
समायोजित करते हमें इतिहास के संग
हम भूल गए लगते हैं;

जिन्हें हम धारण करते हैं अपने भीतर
वर्षों बाद, दूर देशों में भी,
लिए हुए कुछ सड़ा हुआ
भीतर से बाहर की ओर
हमारे शरीर झुके हुए आख़िर में
नभमण्डल के भार से;

वह जो हम तराशते हैं नई और दूधिया,
चिपचिपी, अपनी विदेशी ज़बानों पर
एकपदीय, फालतू चीज़ें
याद दिलाती हमें हर कहीं की,
कहीं नहीं की;

वह जो हम पाते हैं, या सुनते हैं
और विरोध नहीं जताते हैं, आकार देती हैं खुद को
हमारे बालों से, आकार हमारे
शरीरों का, रंग हमारी त्वचा का,
विदेशीपन हमारे मुखों का;

और जो भरी हैं दुखों
और अशान्ति से – हमारे पिताओं और
पूर्वजाओं के नाम, दीप्तिमान शताब्दियों के विस्तार से,
काले समुद्रों के आर-पार
और नए देशों में, लिए हुए हमें
इस दौरान, हमें धारण किए हुए –

धारण किए हुए इसे, समूचा ही,
हमारे सारे ही नाम और नामकरण,
पुकारते हुए हमें किसी चीज़ से
जो भरी हैं निष्ठुर प्रेम से ।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीविलास सिंह

लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
             Mahtem Shiferraw
              Nomenclatures II

Those which we are given
in the brink of sorrow,
or joy – or both;

those marked on our foreheads
the curse of a generation,
or more,

marked on our abdomens
birthmarks, like numbers
aligning us with a history
we seem to forget;

those we carry within
years later, many lands apart,
having something rotten
from the inside out
our bodies finally drooping
with the weight of the firmament;

those we carve new and milky,
pasty on our foreign tongues
monosyllabic, odd things
reminding us of everywhere,
nowhere;

those we receive, or hear
and not dissent to, shaping themselves
from our hair, the shape of our
bodies, the color of our skin,
the foreign-ness of our mouths;

and those filled with grief
and strife – the names of our fathers
and foremothers, beaming through
centuries, across the black seas
and into new lands, carrying us
throughout, containing us –

containing this, all of it,
all our names and naming,
calling us of something
filled with grim love.