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नीली झील / श्रीविलास सिंह

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झील का नीला जल
धरती की गोद में
आकाश का चमकीला मस्तक,
अविचल, स्थिर और मौन
सम्भवतः प्रेम भी होता है इसी तरह
अविचल, स्थिर और मौन ।

प्रेम है तरल जल की भाँति
और पारदर्शी भी !
तुम्हारे नेत्रों की नीली आभा
प्रतिबिम्बित है
झील के नीले जल में
तुम्हारा स्फटिक-सा गात,
संगीत के सुरों-सा उतार-चढ़ाव लिए
अदृश्य मूर्ति-शिल्पी की
अनिंद्य, अद्वितीय कला,
प्रेम की जादुई लहर गुज़रती है
देह की तरल गहराइयों से
और हृदय के समतल में
उग गया होता है सितारों का वन ।

प्रेम के स्निग्ध स्पर्श से
पिघलते महसूस किए हैं मैंने
तुम्हारी देह के ग्लेशियर कई बार,
कई बार हुआ है मेरा पुनर्जन्म
डूबकर इस नीली झील में,
धरती की गोद में
आकाश का हीरक मस्तक, जिसे
सहलाती रही हो तुम
अनगिनत क्षणों तक
और निथरता रहा है तुम्हारा प्रेम
शीतल जल-सा
मेरी पीड़ा-दग्ध आँखों में ।