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दधिचि ने जब कहा / वन्दना टेटे

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दधिचि ने जब कहा —
ले जाओ मेरी हड्डियाँ
और असुरों का समूल नाश कर दो...
तब बुद्ध ने कहा —
मध्यम मार्ग !
पाश चीख़ा —
बीच का रास्ता नहीं होता !

एक महात्मा ने कहा —
वैष्णव जन तो तेने कहिए
जे पीर पराई जाणे रे...!
बाबासाहेब बोले —
बुद्धम शरणम गच्छामि !
राष्ट्रपति ने देशवासियों को बधाई दी —
आसुरी शक्तियों पर
विजय का पर्व है नवरात्रि !

और इन दिनों
जब गूगल मोगली पर फ़िदा है
न्यायपालिका कह रही है —
आदिवासियों को जंगल छोड़ना होगा !
वह भी बारिश के पहले !!

तो, ए ढेंचुवा !
बारिश में आदिवासी कहाँ जाएँगे ?
इस पर लोकतन्त्र चुप है !

तो, ए मैना !
सवाल यह भी है
कि कौन फिर फिर से गा रहा है
वही पुरखा गीत —
अबुआ दिसुम, अबुआ राइज !

ए दीदी ! ए दादा !
हम सब ही तो गा रहे हैं —
जल, जंगल, ज़मीन हमारा है
हमारा है ... हमारा है !!

हाँ, हम सब ही तो गा रहे हैं...
हम सब ही तो गा रहे हैं...