Last modified on 2 फ़रवरी 2021, at 21:22

पके धान के खेतों से दूर / वन्दना टेटे

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:22, 2 फ़रवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वन्दना टेटे |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पके धान के खेतों से दूर
पहाड़ी के पीछे
सरगुजा के खेतों के बीच
चान्द अकेला है
हवा सम्वाद चाहती है
नदी गुनगुनाना ।

सलवा जुडुम के डर से
फुसफुसाती है ज़िन्दगी यहाँ
बहेगी बदलाव की बयार
मुस्कुराएगा चान्द
घोटुल में गूँजेगी हंसी
ये उम्मीद
कौंधती रहती है
बिजली की तरह
जब पके धान के खेतों से दूर
मराङ बुरु पहाड़ पर
नाचते हैं काले-काले बादल