पके धान के खेतों से दूर
पहाड़ी के पीछे
सरगुजा के खेतों के बीच
चान्द अकेला है
हवा सम्वाद चाहती है
नदी गुनगुनाना ।
सलवा जुडुम के डर से
फुसफुसाती है ज़िन्दगी यहाँ
बहेगी बदलाव की बयार
मुस्कुराएगा चान्द
घोटुल में गूँजेगी हंसी
ये उम्मीद
कौंधती रहती है
बिजली की तरह
जब पके धान के खेतों से दूर
मराङ बुरु पहाड़ पर
नाचते हैं काले-काले बादल