भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वे जब आएँगे / श्रीविलास सिंह

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:00, 4 फ़रवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीविलास सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वे जब आएँगे
झुंड में होंगे
अतीत की महानता का
कीर्तन करते,
वर्तमान को नकारते
और भविष्य के प्रकाश से डरे,
अंधेरों की परिभाषाएँ बदलते।
इतिहास, संस्कृति और ज्ञान के
आलोक से वंचित
दिन रात करते
इन्ही शब्दों का जाप।

उनके अफ़वाह के कारखाने गढ़ेंगे
नई संस्कृति,
नए नायक, नए मिथ और
नया इतिहास भी।
उनके हाथों में होंगे
धर्म और जाति की
श्रेष्ठता के हथियार
घृणा के मंत्रों से अभिमंत्रित।
तुम जब तक जागोगे
अविश्वास से आंखे मलते,
तुम्हारे प्रेम और भ्रातृत्व के
सारे तर्क कुंद हो चुके होंगे
और सारे शस्त्र भोथरे।

तुम अपनी श्रेष्ठता कि
ग्रंथि से पीड़ित,
अपने भद्रलोक में
बस रह जाओगे
अपने घाव सहलाते,
जब वे तुम्हारी दहलीज़ पर
दस्तक दे रहे होंगे,
तुम्हारे आरामगाहों की
प्राचीरों को ध्वस्त करने के बाद।