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भकमच्छर (व्यंग्य) / आभा झा

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जाइत जाड़ नहि जानि कतय सँ पहुँचल हेंजक हेंज
सभतरि एकरे चासबास छै सोफा होइ वा सेज।

पहिने कोने - कोन नुकाएल चुप्पे कयलक वार
तखन अपन जंजाल बढ़ा कऽ भेल खूब खुंखार।

लाखक लाख भेलै पुनि संख्या क'रहलै धमगज्जर
सगर देह के चूसि चूसि कऽ छोड़ा देलक भकमच्छर।

बूढ़ जुआन होथु वा नेना बजा रहल छथि ताली
तैयो चुट चुट काटि भगै छनि जतऽ भेटै छै खाली।

मच्छर प्रतिरोधी मशीन सँ पड़य ने कोनो प्रभाव
ढाकी ढाकी आबि कऽ देखियौ खेला रहल छै दाँव।

पावर बुस्टर धूआँ धुक्कुर कीनल कतेक प्रकार
कोनो असरि नहि भेल सहै छी सदिखन अत्याचार।

खूने - खून देबाल भेल छै सभक्यो मारय चाटी
भ'अकच्छ हम कीनि क'आनल विद्युत के खोरनाठी।

पट-पट कऽ सब मरि रहलै अछि रक्तबीज संतान
मुदा कतौ सँ आबि पुनः ओ छेड़ि रहल छै तान।

छथि गिरथैन पड़ोसिन हम्मर बड्ड कलामी नारि...
आइ लोहछि क'पढ़ि रहली अछि मच्छर के खूब गारि।

जागि जागि क' समय बिताबी बेकल भेल सभ प्राणी
शयनकक्ष मे लगा लेलहुँ आब नमहर मच्छरदानी।

दिवस गमाबी ओही हाल मे राति खसाबी नेट
तैयो तत्तेक भनभनाई छै भऽ रहलहुँ इरीटेट।

खन गबैत अछि साँझ पराती खने गबै छै चैती
खने कान लग आबि करै छै सबमिलि क' पंचैती।

मौका पबिते इहो जाल मे पैसि जाइछ चंडाल..
छिलमिलाइत कहुना कहुना क' काटि रहल छी काल।