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रौशनी / राजेश कमल

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सुना है
रौशनी का बँटवारा होगा
चाँदनी में हिस्सेदारी होगी
किसी को मद्धम किसी को तेज़
किसी को काला किसी को सफ़ेद
किसी को दिन किसी को रात
किसी को छत किसी को आस्माँ
किसी को ज़मीं तो कोई बेज़मीं
कोई उपरवाले की नेमत
तो कोई कुत्ते की औलाद माना जाएगा
सुना है रौशनी
क़ुदरत की मिल्कियत नहीं रह जाएगी
हस्तिनापुर ने ख़त्म कर दिया है
सूर्य का एकाधिकार
अब वो बाँटेगा रौशनी
जाति देखी जाएगी
धर्म देखा जाएगा
रंग देखे जाएँगे
भाषा देखी जाएगी
और न जाने क्या क्या देखा जाएगा
फिर मंडियों में सज जाएगी रौशनी
अम्बानी आएँगे, अडानी आएँगे
हिंदुस्तानी आएँगे, जापानी आएँगे
सब बेचेंगे रौशनी
अब यही सोच रहा हूँ
वो जो रोटी दाल में उलझा है
वो जो रोज़ी के सवाल में उलझा है
वो जो दफ़्तर अस्पताल में उलझा है
कहाँ से लाएगा जुगाड़
कि दो जून रौशनी ख़रीद ले