जाड़े का अंत / लुइस ग्लुक / श्रीविलास सिंह
नीरव दुनिया पर, एक चिड़िया बोलती है
काले वृक्षों के मध्य जागती हुई एकाकी।
तुम जन्म लेना चाहते थे, मैंने तुम्हें जन्म लेने दिया।
कब मेरे शोक आये रास्ते में
तुम्हारे आनंद के?
छलांग लगाते आगे की ओर
अंधेरे और उजाले में एक साथ
उत्तेजना हेतु उत्सुक
जैसे तुम हो कोई नई चीज
इच्छुक
अपने को अभिव्यक्त करने को
सारी चमक, सारी जीवंतता
कभी भी सोचे बिना
कि चुकाना होगा तुम्हें इसका कोई मूल्य
कभी भी कल्पना किये बिना कि मेरे स्वर की ध्वनि
नहीं है कुछ और सिवाय तुम्हारे ही अंश के
तुम नहीं सुनोगे इसे दूसरी दुनिया में
स्पष्ट रूप से फिर नहीं
न तो चिड़िया की आवाज़ में ही न मनुष्य के विलाप में,
स्पष्ट आवाज़ नहीं, केवल
एक जिद्दी प्रतिध्वनि
सभी आवाज़ों की जिनका अर्थ है अलविदा, अलविदा
एक निरंतर जारी पंक्ति
जो बांधे रहती है हमें एक दूसरे से।