भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मानसिक स्वास्थ्य / यारसा डैली-वार्ड / श्रीविलास सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:51, 10 फ़रवरी 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यदि तुम जा रही हो
डिब्बा बन्द मछली और बीन्स के साथ
एक गलियारे में जिसमें है
ऊपर मद्धम, चमकीली रोशनी और
नीचे टूटी हुई टाइलें
इस बोध के साथ कि व्यर्थ हैं ज़्यादातर चीज़ें
और एकाएक अनुभव करती हो तीव्र इच्छा इस सबको ख़त्म कर देने की,
रुको मत। एक दोस्त को फ़ोन करो।
अपनी माँ, यदि वह है तो, को फ़ोन करो
और यदि तुम उसे झेल सकती हो,
सुनो उसकी बात डिब्बा बन्द मछली और बीन्स की
क़ीमत के बारे में ।
बोलने वाली घड़ी से पूछो। जान लो
कि जो भी समय वह बताती है वही है वह समय
जब सब कुछ बदल जाएगा ।
छोड़ दो मनहूस गलियारे को ।
ऐसी किसी जगह न जाओ जहाँ वे बेचते हैं
मिठाइयाँ, चिप्स, शराब,
कुछ क्षणों का प्यार अथवा लॉटरी टिकट ।
देखो कि गलियारे के बिलकुल बाहर ही
ढेर से लोग हैं भीतर से तुम से भी अधिक रिक्त,
जिनके आकाश हैं तुमसे भी अधिक अन्धियारे।
अपने को तलाशो, क्योंकि किसी और को सुनने से
नहीं मिलती कभी कोई मदद।
यदि तुम उन लोगों में से एक हो जो
“भाग रहे हैं शहर के चारो ओर पागलों की भाँति”,
लोग जो छलाँग लगाते हैं ऊँची इमारतों से,
शीशे के अग्रभाग वाली इमारतें जिनमें नहीं होती पर्याप्त हवा,
यदि तुम असफल हो रही हो भुलाने में टूट चुकी कहानी को,
यदि तुम बन्द रही हो एक दड़बे में बहुत लम्बे समय
एक बहुत ऊँचे टॉवर में एक ख़तरनाक और ख़राब हालत में,
ढेर सारे टीवी चैनल्स और ढेर सारे टीवी डिनर्स के साथ ।
जहाँ हैं ढेर सारे बिस्कुट, चॉकलेट
मिठाइयाँ, केक और ढेर सारी मदिरा,
पर नहीं है प्रेम मीलों और मीलों तक ।
यदि तुम नहीं उठी समय से आज काम पर जाने को,
अगर आज बीत गया अपराह्न घण्टों पहले
और तुम्हें जगाए हुए है ख़ामोशी,
यदि तुम्हें केवल इतना लगता है कि
किस तरह लेनी है सांस भीतर और बाहर
ठण्डे होते गाढ़े तारकोल की लहरों की भाँति ।
यदि तुम चाह रही हो देर से
नीचे खींच लेना सूरज को अपनी
प्रार्थनाओं से,
छोड़ दो यह मनहूस बिस्तर ।
धो डालो मनहूस दीवारों को, खोल दो
एक खिड़की
बारिश में भी । बर्फ़ गिर रही हो तब भी ।
सुनो बाहर से आती चर्च की घण्टियों की आवाज़ ।
जानो कि वे बजती हैं जितनी भी बार
वह आधा ही है उन परिवर्तनों का
जो तुम्हें करने हैं ।
बन्द करो करना प्रयत्न मरने का । अपना समय पूरा करो यहाँ।
अपना काम करो ।
साफ़ कर डालो फ्रिज ।
दूर फेंको सोया मिल्क । सोया मिल्क
बना है बच्चों के आँसुओं से । रखो
कुछ फूल मेज़ पर। खड़ा करो उन्हें एक जग में ।
काट डालो हरी सब्ज़ियाँ यदि कुछ हैं तुम्हारे पास ।
जानो कि क्या तुम हो भूखी किसी चीज़ के लिए
पर सोच नहीं पा रही कि किस चीज़ के लिए,
अधिकतर तुम होती हो प्यासी मात्र
प्रेम के लिए
केवल ऊबी हुई ।
जब तुम्हारे शरीर में रक्त
थका सा लगे प्रवाहित होने में
तुम्हारी हड्डियाँ लगें भारी
खोखली होने के बावजूद
यदि तुम हो गई हो तीस के पार की
उत्सव मनाओ
और यदि अभी नहीं हुई हो
आनन्दित रहो । जानो कि आने वाला है समय
तुम्हारे जीवन में, जब बैठ जाएगा सब गर्दो-गुबार
और उभरेगा एक रंगीन चित्र इन्हीं रेखाओं से ।
यदि तुम स्वप्न देखती हो शहर के
पर रहती हो ग्रामीण इलाके में
दूध दूहो गायों का ।
बेचो भेड़ें ।
जानो कि वे देंगी तुम्हें शुभकामनाएँ
दूध के बर्तनों के साथ फ़ोटो खिंचवाना अथवा
दौड़ना पहाड़ों की हरी-भरी चोटियों पर गिना जाएगा
किसी और के स्वप्नों की शुरुआत में ।
देखो, वे कभी नहीं रोकेंगे तुम्हें ।
यह केवल तुम थी, केवल तुम ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीविलास सिंह