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पात नए आ गए / केदारनाथ सिंह
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टहनी के टूसे पतरा गए !
पकड़ी को पात नए आ गए !
नया रंग देशों से फूटा
वन भींज गया,
दुहरी यह कूक, पवन झूठा —
मन भींज गया,
डाली-डाली स्वर छितरा गए !
पात नए आ गए !
कोर डिठियों की कड़ुवाई
रंग छूट गया,
बाट जोहते आँखें आईं
दिन टूट गया,
राहों के राही पथरा गए,
पात नए आ गए !