आँगन मे बिहुँसैत कनैल / दीप नारायण
आइ भोरे
जखन सुरुज अकास पर
धरैत छैक पहिल डेग
आ पातक सोपान पर
नान्हि-नान्हि
निर्मल, गोल ओसक बुन्नी धरि
नहुँ-नहुँ उतरैत छैक
सिनुरिया किरिन
आँगनक पुबरिआ कौन मे
देबाल पर बाँहि अरकौने
गाछक सभ डारि पर
सोनाक घाँटी जकाँ
लटकल बिहुँसैत देखलियैक
पीयर-पीयर कनैल
कि एकाएक
बाजि उठैत अछि
हमरा मोन में सहस्त्रहुँ घाँटी
आ घोरि दैत अछि अंतरमन में संगीत
बसातक स्नेहास्पर्ष सिहकी सँ
डोलति हर्षातिरेक में कनैलक डारि
घर में मन में अंतरिक्ष मे
सौंदर्य घोरैत अछि
आम गाछक फुनगी पर बैसल कौआ सँ
बतियाइत अछि कनैल
स्वभिमान सँ ठाढ़ अभयदान परसैत
खहरि गेल अछि हृदयक अंतस मे
बिहुँसैत कनैल
कनैल बिहुँसैत अछि जतय आँगन मे
ओतय, जतय अकास में उड़ैत अछि चिड़ै
शुरु होइछ अंतरिक्ष ओतहि सँ
ओतहि सँ जीवन आ कविता सेहो।