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कविता हमर प्रेमिका अछि / दीप नारायण

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लालटरेस आँखिक नीचा
माउस फूलि गेल अछि हमरा
पीपनी पर ओँघा रहलि अछि निन्न
बहुत निनवासलि अछि जेना
खसि रहलि अछि
धव'-धव' पृथ्वी पर

हम छी जे
सुतबाक नामे नै ल' रहल छी
कय दिन, कय राति सँ
हमरा भीतर एकटा युद्धक
सुरुआत भ' चुकल अछि

विचारक युद्ध !

मारय नहि चाहैत छियै हम
ओहि सभ विचार सभ केँ
हृदय मे भरि लेबय चाहैत छी आ
सहेज लेबय चाहैत छी ओ किताब वला रैक
लेकिन, हम जतेक ओकरा स्पर्श करय छी
जतेक ओकरा चाहैत छी हम प्रेम करय
शब्दक आँखिये हम हुलकी मारय चाहैत छी
ओकर आँखिक ब्रह्मांड मे जतेक
कि ओ ततेक आओर
छितनारे भेल जा रहलि अछि

भरि राति अपन लाइब्रेरी मे बैसल
बुनैत रहलहुँ एकटा गहींर चिन्तन
शून्यक अंतिम छोड़ धरि
जाइत रहलहुँ बेर-बेर
घुमैत रहल मस्तिस्कक चारू कात आकाशगंगा
हम ओकरा मे आ ओ हमरा मे
करैत रहल यात्रा
हजारो मिलक यात्रा
बेर-बेर टकराइत रहल
मस्तिष्कक भीत सँ विचारक थोका
विचार सँ कविता आ
कविता सँ ब्रह्माण्ड रचबाक क्रम
चलैत रहल हमरा भीतर लगातार
आ अनुभव करैत रहलहुँ एगोट अजीब छटपटाहति

कहाँदनि प्रेम होइत छैक तँ
एहिना बौर जाइत छैक लोक अनंत मे
एहिना राति-राति भरि निन्न नहि अबैत छैक
किछु एहने सन होइत छैक छटपटाहटि
भीतर किछु थिर नहि रहि जाइत छै साइत
हमर कविता हमर प्रेमिका अछि
आ हमर प्रेमिका हमर जीवन
आ इश्वर सेहो

कोइ जीवन आ इश्वर केँ बीना कि जीवि सकैत अछि ?
जीवि सकैत अछि कविताक बीना।