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परदेस / दीप नारायण

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ई दागक कपड़ा
काँचे बाँसक रंथी

ई कोहा,कौड़ी
कुश-तील,गंगौट
गोइठाक आँगि
अचिया

ई छौड़झप्पी
नह-केस
श्राद्ध,सम्पिंडन

ई सभटा रीत
एहि दुनियाँक छै
मीत!

लोक ओना मरि त' तखने जाइये
घर छोड़ि जखन
जाइये परदेस।