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देहक परिधि केँ नाँघि / दीप नारायण

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सभसँ पहिने स्पर्श कयने छल
अहाँक आँखि हमरा
साइंस डिपार्टमेंटक फिजिक्स सेशन मे
थर्मोडायनामिक्सक लेक्चर सुनैत
हमहुँ मुस्किया क' देने रही
अपन सहमति

फेर
कॉलेजक लाइब्रेरी मे
हमरा-अहाँक भेल छल बातचीत
हमर हाथ अपन हाथ मे लैत
नहुये सँ सन्हिआएल रही अहाँ हमरा भीतर
ऐब्सोल्यूट जीरो टेम्परेचर पर
घोराय लागल रही हम पानि मे नोन जँका

किछु दिन बाद
कहने रही अहाँ प्रेमिका आ
पहिल बेर लेने रही हमर हाथ पर चुम्बन
जेना हरीयर गाछ पर भोरका रौद
अहाँक स्पर्श सँ
सिहरि गेल छल सगर काया
आ खधकय लागल छल हृदयक गह मे प्रेम
भातक अदहन जँका
एकगोट अदृश्य डोरि बान्हति रहल हमरा
विज्ञानक क्वाण्टम एनटेंगलमेण्ट जकाँ
खींचि रहल छल अहाँ दिस बरोबरि
आ हम अहाँक सिनेह-पाश मे गछारल
विहुँस' लागल रही जेना फूल
छिड़ियाय लागल रही जेना सुगन्धि
बुनय लागल रही मोने मे इन्द्रधनुष

पयबाक हद मे सम्पूर्ण प्रेम
ओछा देलियैक स्वयं केँ जखन
तखन,हमर देहक परिधि केँ नाँघि अहाँ
स्त्री हयबाक निश्चित बिंदु पर अटकि
देने रही वात्स्यायनक व्याख्यान आ
खजुराहोक बेजान मुरुत जकाँ
प्रेम केँ अधुनिकताक अरगनी पर टाँगि
पसारि देने रही ओछानि पर हमर नग्न देह

हम त' चाहने रही सम्मान!
आ अहाँ ?

बुझल अछि
आब अहाँ
कोन नजरि सँ देखब हमरा।