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जब ग़ज़ल होती थी / भारत यायावर

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उर्दू में ग़ज़ल का बाज़ार हुआ करता था
तरह - तरह की ग़ज़लों से दुकान सजी रहती थी
बाइयों की घुँघरू की झँकार हुआ करती थी ग़ज़ल
सरदारों के हाथों में तलवार हुआ करती थी ग़ज़ल

ग़ज़ल का दौर हुआ करता था
मुशायरों में खिलती थी ग़ज़ल
वह समय बीत गया
कल
एक ग़ज़ल का तमाशा हुआ
पर ये हो न सका
घुट गई सांस
पर असर न हुआ

गायकी में है तरन्नुम का असर,
एक अल्फ़ाज़ में भी असर होता है

चलने वाले भी तरन्नुम में चला करते हैं
सीने में गूँजती सी जब कोई ग़ज़ल होती है

उफ़क पे चान्द था ,
चान्दनी में खोई थी ग़ज़ल
रात भर
कोई आँखों में बताता था
और ख़ामोशी में ग़ज़ल होती थी

एक मोमिन को ग़ज़ल सुनना भाता था
बेतुकी बात पर वह बहुत
झुँझलाता था,

मियाँ ! ऐसी भी ग़ज़ल होती है !
न है फ़िक्र मोमिन की
न अदा दाग़ की
और न ग़ालिब का बयाँ
ज़ौक का रंगे-सुखन भी तो नहीं
 फिर भी कहते हो कि ग़ज़ल होती है !

नहीं कुछ जानते
तो सीखो मुन्नवर से हुनर
चोरी के शेर बेचता है बेफ़िकर
बशीर बद्र साहब की सुनो
गज़ब के मिसरे डोलते हैं जनाब !

मैंने मोमिन से कहा —
अमीर खुसरो की तरह कोई न हुआ
ख़ुदा को गोरी समझ वह बैठा !

तब मोमिन ने कहा —
तभी तो
उर्दू झुकती ही गई, झूल गई
ग़ज़लों के बोल से वह फूल गई
घर से निकली थी सज-धज के, मियाँ !
मगर घर लौटने का रस्ता ही कहीं भूल गई !

ग़ज़ल में ख़ुशबू हुआ करती थी
जो मेरे मन में बसा करती थी
एक मीठी सी छुअन होती थी
इश्क में ग़ज़ल ख़ूब मचलती थी
वह बाहों में आ फिसलती थी
सुबह से शाम किए रहती थी

वह ग़ज़ल मिट गई कहीं जाकर
हिन्दी में जब कहीं उतरती थी
सीने में आग बनकर जलती थी
दुष्यन्त के साथ-साथ चलती थी
किसी के सिर पे चढ़ी रहती थी

एक ग़ज़ल हुआ करती थी
ग़ज़ल में जाम एक छलकती थी
वह गज़ब थी , बहुत धुँधलका था
वह एक चिराग़ बनकर जलती थी