कितनी दूर पिया का देश! / सरोज मिश्र
साँझ हुई है चलते चलते,
जाने कितना चलना शेष!
लोग अपरिचित किन से पूछूं,
कितनी दूर पिया का देश!
तुमने जो बतलाए थे वे,
चिन्ह राह से लुप्त हैं सारे!
सील गया सूरज का गोला,
मटमैले हैं चांद सितारे!
जिसको मीठी नदी बताया,
उसका जल सागर से खारा!
कौन कराये पार धार से,
केवट मुझसे ज़्यादा हारा!
छोड़ गए थे कल तुम जैसा,
दिखा नहीं वैसा परिवेश!
लोग अपरिचित किन से पूछूं,
कितनी दूर पिया का देश!
नहीं मिला वह चमन कि जिसका,
तुमने हँस कर ज़िक्र किया था!
पारिजात भी नहीं खिला वो,
लिख कर जिसका पता दिया था!
तुमने अल्हड़ भ्रमर कहे थे,
मगर मिलीं बीमार तितलियाँ!
सूखी बरखा सूखे सावन,
घर-घर गिरतीं मिलीं बिजलियाँ!
सहचर सुख भी छोड़ गया जब
दुःख ने खोले अपने केश!
लोग अपरिचित किन से पूछूं,
कितनी दूर पिया का देश!
कुशल विचारक जब देहरी पर
जन्मपत्र को पढ़ने आया!
मैने हँसकर कहा लाभ क्या,
पहर तो चौथा चढ़ने आया!
उच्च भाव के पुण्य फलित सब,
निम्न ग्रहों ने छीन लिये हैं!
वक्री पथ से कैसे निकलूं,
राहु केतु संगीन लिये हैं!
क्रूर ग्रहों की क्रूर दृष्टि से
पीड़ित मेरा शुभ लग्नेश!
लोग अपरिचित किन से पूछूं,
कितनी दूर पिया का देश!