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छापा है होटल में / पंकज परिमल
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छापा है होटल में
छापे में सूरत नहीं
देह धरी जाती है ।
सूरत वाला
अच्छी-खासी इज़्ज़त वाला है ।
ऊपर से बेचारा
बीवी-बच्चों वाला है ।
धरी गई हर देह
पापिनी घोषित होती है ।
मुँह ढाँपे वो
समाचार का गर्म मसाला है ।।
सच निराकार रहता है
भाषा में सत्य नहीं
भ्रान्ति गढ़ी जाती है ।।
सीता से ज़्यादा
हुआ राम की इज़्ज़त का चूरा ।
रावण पहले से ही
अपयश का भागी है पूरा ।
खलनायक ने चाहे न
आँख-भर देखा ही होगा,
सबकी साझी सम्पत्ति हुई
उसको सबने घूरा ।।
इस अग्निपरीक्षा में
रावण नहीं,
सीय धरी जाती है ।।