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जीवन मटर-पनीर / पंकज परिमल

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जीवन मटर-पनीर
मटर रह गईं कच्ची जिसकी
गायब हुआ पनीर

मिरच-मसाले चकाचक्क सब
किन्तु रहा बेस्वाद
पाककला की कमियों की अब
करें कहाँ फरियाद

सदा ज़ायका रहा चटपटा
बहा रहे दृग नीर

संग-साथ को जली नान है
तोड़े रही न टूट
जिभ्या जी पर गईं जेब को
चौराहे पर लूट

महँगाई की लूम लपेटे
भली करो रघुबीर

काजू, किशमिश, दाख-मुनक्का
कतरे कुछ बादाम
चखने बैठे जो ये बिंजन
मुँह से निकला राम

ज़रा, आँच जो तेज़ हो गई
लगी तली में खीर

छप्पन भोग, छतीसों व्यंजन
लिखे रहे तो भाग
हम से पहले लगे जीमने
छत-मुण्डेर के काग

गीधों की हैं कोर्ट-कचहरी
कौन सुने तहरीर