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गणित का बोध बौना था / अनुराधा पाण्डेय
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गणित का बोध बौना था।
प्रमाणित प्रेम क्या करती?
रहा बैठा जगत गिनता,
प्रणय का योगफल क्या है।
शिखा सी मैं रही जलती,
रहा कब भय अनल क्या है?
यवनिका के पतन तक क्यों
वृथा तन मोह में पड़ती?
प्रमाणित प्रेम क्या करती?
कहो! मेरा कथानक में,
कहीं क्या छद्म था अभिनय?
नहीं क्या सच रहा मेरा,
मदन से आत्मिक अन्वय?
मृषा मैं यदि कहीं होती
न पहले अंक में मरती।
प्रमाणित प्रेम क्या करती?
मिला था देवता मुझको,
अचानक साधना पथ में।
हृदय तत्क्षण निकल कर जा,
चढ़ा था नय प्रणय रथ में ।
समर्पित वन सुमन-सी मैं,
उसी पर मौन थी झरती।
गणित का बोध बौना था।
प्रमाणित प्रेम क्या करती?