भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रेखाएं / भारती पंडित

Kavita Kosh से
Arti Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:15, 2 मार्च 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


हाथों की अनंत रेखाएं
चिकनी, समतल या कटी-फटी
कभी छोटी या लम्बी दौड़ती सी
हर रोज इन्हें मैं
गौर से देखा करती हूँ ..
जब मिल जाती है अनायास सफलता
तो इन लकीरों में एक
नई लकीर खोज लेती हूँ
कि भाग्य साथ दे रहा है
यही रेखाएं बना जाती है
संबल अक्सर मेरा
जब प्रयत्नों के बाद भी
असफलता हाथ आते है
तो इनमें ढूंढ लेती हूँ
एकाध कटी-फटी 'रेखा'
और बनाती हूँ पोजिटिव ऐटीट्यूड
कि किस्मत ही खराब है |