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मादक उड़े अमंद / अनुराधा पाण्डेय
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मादक उड़े अमंद, कसो प्रिय भुजबंध। जीवन मृदुल छंद, प्रीत बरसात है।
चतकत अंग अंग, वारि भी लगे हैं भंग, ज्ञात नहीँ मैं अनंग, दिन है कि रात है।
बैठ चलें पास-पास कहती उद्विग्न प्यास, पूर्ण करो उर आस, देख पीत गात है,
सहज सहेज क्षण, रोम-रोम प्राण धन, तरलित आज तन प्रणय प्रभात है॥