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कहाँ चलें अरी! लभे / अनुराधा पाण्डेय
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कहाँ चलें अरी! लभे, न शूल पाँव में चुभे, अभंग प्रीत में निभे, राग रास रंग हो।
मिले प्रिये! अभी-अभी, प्रभा न शेष हो कभी, प्रबोध हो दिखो तभी, वेदना न संग हो।
चले अबाध अर्चना, सु प्रेम की उपासना, घुले न भूल वासना, साधना अभंग हो।
रहें सु-बाहु पाश में, जिएँ सुवास हास में, मिले सु-साँस साँस में, रंग में न भंग हो।