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अगम्य-गम्य राह में / अनुराधा पाण्डेय

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अगम्य-गम्य राह में, सदा अदाह-दाह में, सुप्रीत की प्रवाह में, पंथ साथ जो गहे।
गणे बबूल फूल सा, रहे निबद्ध मूल-सा, चुभे न पाँव शूल-सा, साथ-साथ जो रहे।
अभिन्न धूप-छाँव में, न रोध प्रीत पाँव में, अनंत अग्नि ठाँव में, संग-संग जो दहे।
अगाध तीव्र धार में, गणे न दंश प्यार में, मिले कभी हज़ार में, मीत साथ जो बहे।