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प्रगल्भ हास्य वंद्य है / अनुराधा पाण्डेय
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प्रगल्भ हास्य वंद्य है, सुदीर्घ छाप छोड़ता, सुबोध मार्ग को करे, मंद-मंद है झरे।
अकाट्य देह मर्त्य है, अमर्त्य किन्तु कृत्य है, सुगंध कृत्य बुद्ध है, शुद्धता नहीं मरे।
सुपंथ ही गहें सदा, निषिद्ध निम्न कर्म है, प्रशस्त पुण्य को करें, नाव देह तो तरे।
विकीर्ण हो सु-रश्मियाँ, विदीर्ण दाह-आह हो, बढ़े सुनेह की सुधा, दिव्य भाव ही भरे।