भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समुद्र वह है / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:53, 8 मार्च 2021 का अवतरण
समुद्र वह है
जिसका धैर्य छूट गया है
दिककाल में रहे-रहे !
समुद्र वह है
जिसका मौन टूट गया है,
चोट पर चोट सहे-सहे !